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चंद्रसखा: मणिपुरी लोक-कथा

किसी गाँव में एक बूढ़ा और बुढ़िया रहते थे। उनके कोई संतान नहीं थी। उनके पास एक तोता था। वे उसे ही अपने पुत्र की भाँति मानते थे और लाड़-प्यार से उसका पालन-पोषण करते थे। उन्होंने उस तोते का नाम चंद्रसखा रखा था।

चंद्रसखा धीरे-धीरे बड़ा हो गया। वह तरह-तरह की बोली बोलने लगा। जब कोई घर में आता, वह उसका स्वागत करता और जब आगंतुक चला जाता तो वह उसकी आवाज की नकल करके दिखाता। कभी वह बहुत देर तक नाच दिखाता रहता । इस प्रकार वह बूढ़े और बूढ़ी का खूब मनोरंजन करता था। वे लोग भी उसे बहुत प्यार करते थे। बूढ़ा बगीचे से आम और अमरूद तोड़कर लाता था और बुढ़िया चंद्रसखा को गोद में बैठा कर खिलाती थी।

एक दिन चंद्रसखा ने बूढ़ी से कहा, “दादी माँ, मैं अपने मित्रों के साथ जंगल में फल खाने जाऊंगा।”
बुढ़िया बोली, “ठीक है, मगर पहले अपने दादा से पूछ लो ।”
चंद्रसखा दादा के पास गया और बोला, “दादाजी, मैं अपने मित्रों के साथ फल खाने जंगल में जाऊंगा ।”

बूढ़े ने कहा, “बेटा, फल तो मैं तुम्हें बाग से तोड़ कर ला दूँगा, जंगल में जाकर क्या करोगे ?”

चंद्रसखा जिद करते हुए बोला, “नहीं दादाजी, मैं आज बाग के फल नहीं खाऊँगा। मैं जंगल में जाकर फल खाऊंगा। इस बहाने थोड़ा घूम भी लूंगा।”

यह सुन कर बूढ़े ने कहा, “अच्छा, जैसी तुम्हारी मर्जी लेकिन घूम कर जल्दी लौट आना। जब तक नहीं आओगे तब तक हमें तुम्हारी चिंता लगी रहेगी ।”

बूढ़े की अनुमति पाते ही तोता अपने मित्रों के साथ जंगल की ओर उड़ चला। सभी मित्र उड़ते-उड़ते घने जंगल में पहुँच गए। चंद्रसखा सबके आगे-आगे उड़ रहा था। उसने जंगल में तरह-तरह के फलों के पेड़ देखे। वह अपने मित्रों से बोला, “मित्रो, अब बहुत घूम चुके हैं। मेरे पेट में तो भूख के मारे चूहे कूदने लगे हैं। सामने बहुत से फल के पेड़ भी दिखाई दे रहे हैं । चलो सब लोग आराम से फल खाएं ।”

सभी तोते फलों पर टूट पड़े। चंद्रसखा भी एक से दूसरे पेड़ पर जा-जाकर फल खाने लगा। जब उसका पेट भर गया तो उसने देखा कि सामने शिब नाइदब वहै (अमरफल) का पेड़ है। वह तुरंत समझ गया कि यदि कोई बूढ़ा आदमी इस फल को खा लेगा तो वह युवा और दीर्घजीवी हो जाएगा। उसने सोचा कि वह चुपचाप इस फल को ले जाकर अपने दादा-दादी को खिला देगा। उसने फल तोड़ लिया और चोंच में दबा कर अपने घर की तरफ उड़ चला।

रास्ते में एक तालाब पड़ता था। उसका जल बहुत मीठा और शीतल था। चंद्रसखा के मित्रों ने कहा कि वे सब लोग इस तालाब में नहा कर अपने-अपने घर जाएँगे। सभी तोते तालाब में नहाने लगे। चंद्रसखा ने अपनी चोंच का फल तालाब के किनारे एक झाड़ी में रख दिया और नहाने लगा। उस झाड़ी में एक विषधर साँप रहता था। उसने अपना विष उस फल में डाल दिया। चंद्रसखा को इस बात का कोई पता नहीं चला। उसने नहाने के बाद फल चोंच में दबाया और घर आ गया। घर आते ही वह बूढ़े से बोला, “दादाजी, देखिए मैं आपके लिए क्या लाया हूँ !”
बूढ़े ने उत्सुकता से पूछा, “क्या लाए हो ?”
चंद्रसखा ने कहा, “मैं आपके लिए शिब नाइदब वहै लाया हूँ। इसे खाते ही आप युवा और अमर हो जाएँगे। जल्दी से इसे खा लीजिए।”

बूढ़े ने तोते से फल ले लिया किंतु उसे कुछ संदेह हुआ। उसने उस फल के दो टुकड़े किए और एक टुकड़ा अपने कुत्ते को खिलाया। कुत्ता उसे खाते ही मर गया । यह देख कर बूढ़े को वहुत क्रोध आया। उसने सोचा कि उन्होंने जिस तोते को इतने प्यार से पाल-पोस कर बड़ा किया, वही उसे मार डालना चाहता है। बूढ़े ने तोते को पकड़ा और उसकी गर्दन ऐंठ दी। चंद्रसखा तड़पकर मर गया।

बूढ़े ने दूसरा टुकड़ा आँगन के एक कोने में फेंक दिया। कुछ दिनों बाद वहाँ एक पौधा ठग आया । समय आने पर उस पेड़ पर बहुत फल लगे। एक दिन बुढ़े और बुढ़िया में झगड़ा हुआ । बूढ़ा किसी बात पर नाराज होकर बूढ़ी से बोला, “तुम अभी मेरे घर से चली जाओ ।”

बूढ़ी ने रोते हुए कहा, “जब मैं युवती थी तब तुम मुझे बहुत प्यार करते थे। अब मरने का समय निकट आने पर मुझे घर से निकाल रहे हो। अब मैं कहाँ जाऊँ।! मेरे लिए मर जाने के सिवा कोई उपाय नहीं है।” इतना कह कर बूढ़ी रोते हुए पेड़ के पास गई और उसने एक फल तोड़ कर खा लिया। वह सोच रही थी कि विष वाला फल खाने के कारण उसको मृत्यु हो जाएगी किंतु हुआ ठीक इसके उलटा। वह बूढ़ी से युवती बन गई। उसे बहुत आश्चर्य हुआ।

उसने एक फल तोड़ा और बूढ़े के पास जाकर कहा, “देखो, झगड़ा खतम करो। मैं फल खाकर युवती बन गई हूँ। तुम भी यह फल खाकर युवक बन जाओ ।” बूढ़े को हँसी आ गई । उसने फल खा लिया। खाते ही वह युवक बन गया। बूढ़ा-बूढ़ी, युवक-युवती बनकर बहुत खुश हुए। उन्हें, बस यही दुख हुआ कि उन्होंने बिना सोचे-समझे चंद्रसखा को मार डाला ।

***
साभारः लोककथाओं से साभार।

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